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अशआर लिख रहा हूँ

जितना दिया है तूने, अब तक वो कम नहीं,
यूँ भी नहीं है कि, बादशाहों को ग़म नहीं।

जितना भी मिला मुझको, तूने अता किया ,
दरियादिली ये तेरी, मेरे करम नहीं।

फेहरिस्त ख़्वाहिशों की, चलती है मुसल्सल,
पूरी कभी ना होती, उमर तो कम नहीं।

जितनी मेरी ज़रूरत, उतनी दी तूने चादर,
पर ख़्वाहिशें ये मेरी, होती ख़तम नहीं।

अब्तर ये ज़िंदगी बनी, कफ़-ए-दस्त से,
नाराज़गी का तेरी, मुझको भरम नहीं।

ताश के पत्तों के महल सा, मैं नहीं बिखरा,
क्यों की ये नहीं कि तू, मेरा सनम नहीं।

किसी को तकदीर मिली, तदबीर किसी को,
मेरा रब मिला है मुझको, कोई सितम नहीं।

खुशियाँ यूँ ही कभी ना, इनसाँ खरीद पाया,
ऐसा भी नहीं जेब में, उसके दिरहम नहीं।

अश्क-ए-लख़्त-ए-जिगर से, भी शीर ख़ुश्क है,
Tag: poetry और3 अन्य
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