कोई दरवाज़े पे खड़ा है
कभी कभी
कमरे में बैठे-बैठे महसूस करता हूँ
एक रोज़ तंग आकर, दरवाज़ा खोलता हूँ
अब आज़ाद है परछाईं तेरी Read More! Earn More! Learn More!
कोई दरवाज़े पे खड़ा है
कभी कभी
कमरे में बैठे-बैठे महसूस करता हूँ
एक रोज़ तंग आकर, दरवाज़ा खोलता हूँ
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