
था उसका पहला दिन ससुराल में,
कुछ गुंथे सपने मन की तरंगो में,
निहारती पति को प्रेम आवेग में,
खो जाती कभी कभी पिहर याद में
सुबह की किरणें नाचती पोशाक पर,
परी सी कभी लगती खुद को धरा पर,
उड़ती मन ही मन में सपनो के समंदर पर,
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