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मेरे शुरुआती मुक्तक

दिन शुरू है तुझपे , तुझपे खतम ,

    कैसे छुपाऊ तेरे दिए ये जख्म ,

       जानता हूं तू मेरी कभी न हुई

         कब तक ये दिल सहेगा तेरे ये सितम। 


मेरी कलम की अकेली स्याही थी तू ,

  जो कुछ लिखा भाव स्थाई थी तू ,

     अब कैसे मैं खुदको शायर कहूं

दिल के मुक्त एहसासों की शायरी थी 


अधूरी कहानी है क्या फायदा ,

     भावना का बता क्या कायदा ,

           अगर ठहर जाए धरा अक्ष पर तो

                भानु शशि का क्या फायदा ।

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