यूं विषम समय तुम झलक दिखा, तन में सिहरन भर जाते हो
हमें समय-2 विचलित करके, तुम पता नहीं क्या पाते हो I
मैं कितना बेचारा हूं, उस विचलन में दब जाता हूं
सत्य कथन है नहीं है वो पल, तुमसे बिछड़ जब जाता हूं I
इक सतत श्रंखला थी जीवन में, अब शून्य उभर सा आया है
इस रिक्त स्थान की पूर्ति का,व्यंजक बस तुममें पाया है I
वो व्यंजक मुझको तुम दे दो, कितना अद्भुत एहसास जगे
फिर मृत्युलोक के ग़मों में भ, आनंद का अनुभव खास लगे I
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