शीर्षक – शुभांगी
जिंदगी की कठिन राह में, इक प्रगाढ़ साथी जुड़ा है I
पाषाणित हर राह निश्चित, पुष्पित पथ की ओर मुड़ा है II
उस शख्सियत को क्या कहूँ, जब शब्द कोष में शब्द नहीं है I
ईश्वर तुल्य उपाधि उसकी, जिससे कौन यहां स्तब्ध नहीं है II
स्तब्ध है ये देख कर कि, क्या है जो ये कर ना पाए I
हर भयावह तिमिर में जब, ये मजबूत कवच बन जाए II
तीव्र प्रहार, जीवन की वेदना, क्षण भर
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