खाकी's image
मैं खाकी हूं


आंखों में सपने मैं भी पालती हूं


मेरा भी घर आंगन है 


उसमें आखें राह मेरी भी ताकती हैं 


कर्तव्य पथ पर आगे निकलती हूं 


किंचित भय में ना जीती हूं


ना जाने कितने अनजान चेहरों से


मैं परिचित होती हूं


मैं खाकी हूं


आंखों में  सपने मैं भी पालती हूं


बिना रिश्तो के, बिना पहचान के


ना जाने कितनों का मैं कंधा हूं 


कितने दिलो
Read More! Earn More! Learn More!