ढुंढना पड़ता है..
तुम क्या जानो..!
असली-नकली
शोर-मौन
के बीच
अनकही-अधरंग बिना सावन लौटता बसंत,
युँही नहीं बनती
अधर तक आ
कहने को व्याकुल
मन से परे
बुद्धि को छोड़ बस आत्मा
हाँ बस आत्मा
को छुती वो अमर प्
Read More! Earn More! Learn More!
ढुंढना पड़ता है..
तुम क्या जानो..!
असली-नकली
शोर-मौन
के बीच
अनकही-अधरंग बिना सावन लौटता बसंत,
युँही नहीं बनती
अधर तक आ
कहने को व्याकुल
मन से परे
बुद्धि को छोड़ बस आत्मा
हाँ बस आत्मा
को छुती वो अमर प्