
“शहर”
छोटे छोटे पेड़ और ऊँचे ऊँचे मकान,
यही है मेरे इस गरीब शहर की पहचान,
जाने क्यों छोड़ गाँव हम यहाँ पे आये,
बस्ती वालों की नज़र में, हम शहरी कहलाये,
जो साथ रहते है यहाँ, वो भी हैं अनजान,
यही है मेरे इस गरीब शहर की पहचान,
बैठ कर चार बातें करने का यहाँ वक़्त है किसे,
सभी दौड़ रहे है चाहे देखिये जिसे,
कोई कुछ भी कहे, हकीकत में है वीरान,
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