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ढ़लती सी‌ इन्सानीयत

इतना कृर, इतना निष्ठूर कोई कैसे बन जाता है,

लहु लुहान देख किसी को भी कोई आगे कैसे बढ़ पाता है,

अपने मतलब के आगे, द़र्द भरी चीखों को भी अनसुना कर जाता है,

अपने स्वार्थ के पीछे आखिर इन्सान इतना अंधा कैसे हो जाता है,

ऐसे घनघोर अन्याय और हिंसा ईश्वर ना जाने कैसे सह जाता है,

क्यों करूणा नहीं उसे अपने बन्दों पर होती, क्यों इस द

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