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आज का इन्सान

कैसा असंवेदनशील सा हो रहा है जग,

कैसे सुन्न से बन रहे हैं लोग,

ये कैसी दुनिया है, जाने किस सांचे में ढाल रहे हैं लोग,

ना ग़ैरों के लिए संवेदना है दिल में, 

ना अपनों के लिए प्यार,

मर रही है मानवता या जाग रहा है पिशाच,

हर तरफ़ तो बस भावहिन पूतले हैं,

किसी के दुःख तक़लीफों से किसी को मतलब नहीं यहां,

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