
किसी इंसान को जीवनगति नित प्रतिदिन अपने अलग अलग आयाम को छूती है। एक मातापिता के जीवन में जब उसका बच्चा आता है तो शायद ही उस खुशी को बयान करने के लिए शब्द बने हो। चाहे वो किसी अमीर घर में पैदा हुआ बच्चा हो या गरीब की झोपड़ी में पैदा हुआ एक गरीब बच्चा। मां और बाप उसकी हर एक खुशी के लिए हर एक चीज कुर्बान कर देते है। भारतीय समाज हमेशा से एक सभ्य समाज का प्रतिनिधित्व करता आया है। जहां प्रत्येक रिश्ते की अपनी एक मर्यादा और एक सभ्यता रही है।
लेकिन आधुनिकता के दौड़ में हमने बहुत कुछ खोया है, कुछ पाने की ख्वाहिश में, और सबसे बड़ी चीज हमने खो दी है वो है "संवेदनशीलता"
एक पुरानी कहावत थी " पुनः मूषको भवेत्" । हम फिर वही बन गए जो हम थे आदिमानव।
खास कर के हमारा जो बर्ताव था बड़ो के प्रति, बच्चों के प्रति, औरतों के प्रति और खास कर के वृद्धों के प्रति उस में सबसे ज्यादा कमी आई है।
क्या आपने कभी सोचा है कि आज कल आप सोशल मीडिया और अखबारों तथा अन्य समाचार पत्रों में बलात्कार की घटनाओं पर कितना ध्यान देते है ?
याद कर जब निर्भया कांड हुआ था तब देश में किस तरीके की भावना बनी थी, क्या वो अब भी हमारे में जीवित है ?
एक बार जब हाथी के पेट में विस्फोटक डाल के उसकी हत्या की गई थी तब आपकी संवेदना क्या रंग लाई थी ?
याद करिए जब एक बच्चे जिसके एक खास किस्म की बीमारी हुई थी जिसके इलाज के लिए कुछ दिनों में करोड़ों रुपए एकत्रित कर लिए गए थे।
लेकिन अब आप उस संवेदना का उपयोग सिर्फ सोशल मीडिया पर कमेंट करने में करते है।
शिक्षा में आप याद करिए जब तक आप शिक्षक में भगवान देखते थे आपका बच्चा भी संस्कारवान बनता था जब से आप शिक्षक को सिर्फ एक मासिक मजदूरी पर काम करने वाला समझा है आपके बच्चे में उसकी झलक आपको स्पष्ट दिखाई देती है। आपको आपके बच्चे की बातों से यह साफ पता चलता होगा की आपका बुढ़ापा कैसा कटेगा। उसके व्यवहार में परिवर्तन सिर्फ संवेदना की कमी दर्शाता है।
आप इंसान की संवेदनहीनता का अंदाजा इस बात से लगा सकते है की बिस्तर पर पड़े हुए वृद्ध को वो सिर्फ एक शरीर मानता है जिसके होने न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
जिस बच्चे को पालने के लिए, जिस बच