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प्रेम के अश्रु

चलो मान लिया मुहब्बत थी ही नहीं,
वो तकरार ही सही, होती ही होगी,
तकिए के नीचे मुंह छुपा, रोता मैं,
थोड़ा ही सही, वो भी रोती ही होगी।

जिस रिश्ते में बंध कर हम, 
एक संग सब जीना सीखें,
उन रिश्तों को भूलने में, जरूर ही
थोड़ी परेशानी तो होती ही होगी।
तकिए के नीचे मुंह छुपा, रोता मैं,
थोड़ा ही सही, वो भी रोती ही होगी।

थोड़ी उसकी मुस्कुराहट से, 
खुशी मुझे भी होती ही होगी,
उस गुमनाम मुसाफिर की,
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