![आंखे's image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/post_pics/%40cjeet406/None/1651762864087_05-05-2022_20-31-06-PM.png)
कभी गुस्से भरी,
कभी झुकी हुई,
काली काली काजल सी,
वो बातो मैं उलझी हुई!
काली, कथाई, नीली, हरी;
सातों सारे रंग बसे!
अड़ाए हैं मस्ती भरी;
दरिया मोती संग बसे!
गहरी पृथ्वी पाताल सी,
बसे मदिरा पान,
लाज, शर्म, हया बसी,
उसमे बसी, पुश्तैनी शान!
खंजर, कटार, तलवार सी,
कहे साहित्य ज्ञान,
दिखे सुरीली, महके घनी,
जैसे स
कभी झुकी हुई,
काली काली काजल सी,
वो बातो मैं उलझी हुई!
काली, कथाई, नीली, हरी;
सातों सारे रंग बसे!
अड़ाए हैं मस्ती भरी;
दरिया मोती संग बसे!
गहरी पृथ्वी पाताल सी,
बसे मदिरा पान,
लाज, शर्म, हया बसी,
उसमे बसी, पुश्तैनी शान!
खंजर, कटार, तलवार सी,
कहे साहित्य ज्ञान,
दिखे सुरीली, महके घनी,
जैसे स
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