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कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान है पिता।

कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान है पिता।

कभी धरती तो कभी आसमान है पिता।।

अगर जन्म दिया है माँ ने।

जानेगा जिससे जग वो पहचान है पिता।।


कभी कंधे पे बिठाकर मेला दिखता है पिता।

कभी बनके घोड़ा घुमाता है पिता।।


माँ अगर पैरों पे चलना सिखाती है।

तो पैरों पे खड़ा होना सिखाता है पिता।।


कभी रोटी तो कभी पानी है पिता।

कभी रोटी तो कभी पानी है पिता।।


कभी बुढ़ापा तो कभी जवानी है पिता।

माँ अगर है मासूम सी लोरी।।


तो कभी ना भूल पाऊंगा वो कहानी है पिता।<

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