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तुम भाव समझ जाना

तुम भाव समझ जाना
मेरे शब्दों पर मत जाना

तुम्हारा यह कहना और 
मेरा अपलक देखते जाना। 

लेकिन अपनी लिखी पाती को जब तुम मेरे तकिये के नीचे चुपके से छिपा रहे होंगे.... हाँ, फ़िर मैं हमेशा की तरह किसी दरख़्त से तुम्हें देख रही होंगी और देख रही होंगी तुम्हारी झिलमिल आँखें, 
सुकून से तुम्हारे चेहरे की सिलवटों के पीछे की फ़िक्र को झाँकती हुई थोड़ी चिंता थोङे प्यार से तुम्हारे दाएँ हाथ के अंगूठे के नीचे दबे खत का कोना। 
वो कोना तुम हमेशा दबाये रखते हो बिल्कुल वैसे ही जैसे दबाते हो मेरे लिए अपना प्यार सीने में। ज़ाहिर भी करते हो और इंकार भी बेइंतहा। 

चलो जब तुम लौट जाओगे पाती रखकर, मैं दरख़्त के ए
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