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अपाहिजों की व्यथा

कहते हैं
अपाहिजों की व्यथाएँ नहीं होतीं
अपाहिजों की कथाएँ भी नहीं होतीं,
उनके होते हैं घायल मन छलनी से
जिनमें रिसती हैं ग्लानियाँ,
ग्लानियाँ―
जो उन त्रुटियों के लिए होती हैं
जो उन्होनें की नहीं होतीं...
ग्लानियाँ―
जिनकी अनुभूति उनके द्वारा कराई जाती है
जो उनके अपने होने का दावा करते हैं
जिन्हें ईश्वर ने उनकी सुरक्षा के लिए भेजा होता है...
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