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ऐ जगत जननी मेरी माता भवन तेरा निराला
फैली जग में तेरी ख़ुशबू ये चमन तेरा निराला

माँ तूने इक पल में महिषासुर को ऐसे मार फेंका 
बैठी जिस तख़्ते पे वो सब से गगन तेरा निराला

आता जो भी तेरे दर पे कैसे कोई जाता ख़ाली
आस पूरी कर ले जिस की वो सजन तेरा निराला

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