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ग़ज़ल-तुम्हारे प्यार के क़ाबिल

जरा सा  मसअला है  ये  नहीं  तकरार  के  क़ाबिल
किनारा  हो नहीं  सकता कभी मझधार के  क़ाबिल

न  ये  संसार  है  मेरे  किसी  भी  काम का  हमदम
नहीं  हूँ  मैं  किसी भी  तौर  से  संसार  के  क़ाबिल

न  मेरी   पीर  है  ऐसी   जिसे  दिल   में  रखे  कोई
न  मेरी  भावनायें  हैं   किसी   आभार   के  क़ाबिल

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