ग़ज़ल-दुःख's image
किसी की बेरुख़ी  है या सनम  हालात  का  दुःख
परेशां  हूँ हुआ  है अब तुझे किस बात का दुःख

तुम्हें  तो  पड़  गई  हैं   आदतें  सी  रतजगों  की
तुम्हें क्या फ़र्क़ पड़ता बढ़ रहा जो रात का दुःख

जमाती  सर्दियाँ, फुटपाथ  का  घर, पेट  ख़ाली
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