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एक प्रार्थना मेरे कृष्ण से

यौवन की वो उमंगें, उठती हुई तरंगें

सब शांत हो रहीं हैं, अब उम्र ढलते-ढलते


आए थे क्यू जहाँ में? जाएँगे भी क्या लेकर?

जागा हुआ है ख़ौफ़, ये एहसास पलते-पलते


ओढ़ी हुई है चादर इस रूह ने बदन की

यह उम्र बीत जानी है लिबास जलते-जलते


ये लोक ना सँवारा, परलोक भी बिगाड़ा,

अब क़ाफिला उठेगा,

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