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उपनिषद् गीत

स्वतः अंतः से सबकुछ पूँछ लीजै,
हमें श्रुतियों ने ऐसा है बताया ।
मेरा संबंध क्या परमात्मा से ?
अहो ! कैसा ये संशय मन में आया ।

जिसे मिलने की आशा ही नहीं थी,
उसे पाने का अब बीड़ा उठाया ।
परम्-हंसों का जोड़ा मीत बनता,
शशक-चित्रक का नाता बन न पाया ।

हरि ! मैं क्षीण हूं, अल्पज्ञ भी हूं,‌
जो इस सर्वज्ञता को है भुलाया ।
मैं म
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