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एक ऐसा भी वक्त हुवा

पिंजरे के पंछी आज़ाद हुवे

महलो में रहने वाले भी इस दिन पिंजरे में कैद हुवे

इतना मजबूर इंसान हुवा

ईश्वर से चेहरा छुपाया हुवा


मोत भी माथे पर मंडराती हुवी

अस्पताले भी सब भरी हुवी

इतने इंसान की मोत हुवी

मुर्दो को भी जगा किस्मत न हुवी

इतनी कठोर परिस्थिति हुवी


सब हथियारे भी भरे हुवे

कुछ काम ना वो आते हुवे

सब का अभिमान भी चूर हुवा

कुछ रास्ता भी मिलता न हुवा

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