![ग़ज़ल's image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/post_pics/%40bina-kapur/None/1649176799244_05-04-2022_22-10-05-PM.png)
यूँ तो रोज़ मिलते हैं तुमसे पर मुलाक़ात बाक़ी है अभी,
और सबकुछ तो कह दिया वो एक बात बाक़ी है अभी!
ख्वाब, आरज़ूएँ, हसरतें सभीकुछ सौंप दिया तुम्हें हमने,
साँसों में सिमटी हुई है जो वो एक सौगात बाक़ी है अभी!
वैसे तो सर से पाँव तक सराबोर हूँ चाहत में तुम्हारी मगर
ज़िस्त का गुबार बहा ले जाए वो बरसात बाक़ी है अभी!
ख्वाब-ओ-ख्यालों में तो मुमकिन ही नहीं तुम्हें पा लेना,
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