
महिला दिवस के अवसर पर मेरी स्वरचित कविता प्रस्तुत है:- शीर्षक:- कौन कहता है बेवश तुझे..... कौन कहता है बेवश तुझे और कब तुम किससे हारी है। मत समझ खुद को अबला, तुमसे ही यह दुनिया सारी है। प्रलय जब भी हुआ है ब्रम्हाण्ड में और जब जब भी हुआ है अत्याचार। ढाल बन तुम तब देवी रूप में अवतरित होकर सबका किया बेड़ा पार। कौन कहता है बेवश तुझे ....... माँ,पत्नी, बेटी, बहु, बहन के रूप में तुमने हर रिश्ते को बखूबी निभाया है। सहनशीलता, दया, क्षमा, करूणा तुमने हर रूप में प्रेम छलकाया है।