
कुछ ऐसे तेरे- मेरे, मैं सपने देखता हूँ,
बहुत देर बैठे- बैठे, मैं ये सोचता हूँ,
खुदको मैं रांझा, तुझको हीर सोचता हूँ,
तू हीर है तो मैं रांझा हूँ
तू पतंग यदि तो मैं मांझा हूँ!(१)
जीवन की थामें जैसे कोई डोर है,
कोई और नहीं वो तू हीर है,
बंधन ऐसा जुड़ जायेगा,
मैनें न कभी ये सोचा था,
साथी ऐसा मिल जायेगा,
जो कदम से कदम मिलायेगा,
जीवन को सरल बनायेगा,
अब तेरे बिना मैं आधा हूँ,
तू हीर है तो मैं रांझा हूँ
तू पतंग यदि तो मैं मांझा हूँ!(२)
इश्क़- विश्क ये क्या होता है,
न समझी थी, न जानी थी मैं,
इन राहों से अनजानी थी मैं,&nb
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