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मां का वात्सल्य


अनुगृहीत हुँ माँ के वात्सल्य की ,
जिसका न आदी है न अंत
 
अनुगृहीत हुँ , 
माँ अस्तित्व की ,
जिसने अस्तित्व की सम्भावना को ,
जन्म देने के लिए धारण किया
 
एक ऐसी भूमि मे पल रही जहाँ
माँ के मिटते ही अस्तित्व का नवपल्लव 

माँ का वात्सल्य कितना अदभुत है ,
जहा एक भ्रूण , 
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