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*लड़की*

इक लड़की थी
प्यारी सी
भोली भाली
कुछ मासूम सी
ख़ुद में खोई - खोई सी
सबको लगती कुछ अजीब सी

सबसे अलग 
अकेली बैठी
जाने क्या - क्या सोचा करती
कोई कुछ पूछे भी तो
ज्यादा कुछ ना बोला करती

कॉलेज आना जाना था
पर दोस्त नहीं थे उसके पास
शायद इसीलिए हरदम
बस किताबों से बातें करती

सबको लगता ये बीमार है
कुछ इसके सर पे सवार है
कुछ कहते , हुआ प्यार है
पर उससे कुछ पूछे बिना ही
तय कर लिया था सबने ये

फिर एक दिन 
कुछ अलग हुआ
जो ना सोचा था सबने
वो सब हुआ
उस लड़की ने बात की सबसे
बड़े प्यार से , लहज़े से
फिर धीरे धीरे बात बढ़ी
वो भी मिल गई 
उन सबमें यूं
जैसे दूध में मिश्री घुलती

फिर उसके कुछ दोस्त बनें
कुछ खट्टे मीठे याद सजी

जब बोलना उसने शुरू किया
मानो  
इसका कोई अंत ना हो
धीरे धीरे वो तो
सारे टीचर्स की भी लाड़ली हुई

पर 
अब भी कभी कभी 
वो खो जाती थीं जाने कहां
शायद उसके अतीत में
या फ्यूचर के सपने में
वो रहती कुछ कुछ अपने में

फिर एक प्यारा सा दोस्त बना
जो था कुछ कुछ उसके जैसा
या शायद वो ,उसके जैसी
जो समझता था
बातें उसकी तो खामोशी भी
उसकी मुस्कान सब देखते थे
वो उनमें छुपा सा दर्द भी

कहता तो था वो भी उससे
तुम हो बिल्कुल अलग
पर हो कुछ कुछ अजीब भी
कभी होती हो वर्तमान
कभी बन जाती अतीत सी
मेरे मन मे ये उलझन है
आखिर क्या तुम्हारे मन में है

पूछा था 
मैंने भी उससे, 
सब कहते क्यूं , 
तुम अजीब हो
फ़िर उसने मुझको समझाया
जो कोई भी जानता ना था
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