तूं अचल रहा पर्वत सा
मैं कल कल बहती नदी सी
टकराऊं लिपटूं तुमसे
तूं टूट टूट घुलता रहा मुझ मैं!!
रही प्रीत अव्यक्त अपरिभाषित
मैं कल कल बहती नदी सी
टकराऊं लिपटूं तुमसे
तूं टूट टूट घुलता रहा मुझ मैं!!
रही प्रीत अव्यक्त अपरिभाषित
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