
कुंती कर्ण संवाद
माँ कुंती -
मांगू तुमसे मैं पुत्र आज भिक्षा अपने लालो की
कथा अमर रही है सदा दान करने वालो को
वैसे भी तुम तो दानवीर कर्ण कहलाते हो
अपने द्वारे आए को खाली हाथ नहीं लोटाते हो
वो भी तो हैं भाई तुम्हारे भ्रातृ धर्म निभाओ तुम
दानवीर कहलाने की कथा अमर कर जाओ तुम
पुत्र धर्म निभाओ तुम मैं मातृ धर्म निभाऊंगी
शुद्र पुत्र से मैं तुम्हे कुंती पुत्र कर्ण बनाऊंगी
कर्ण -
क्षमा माते
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