
ठिकाना इन परिंदों का कोई शजर होगा
दूर ही सही तेरा भी कोई घर होगा
थक गए हैं जानिब-ए-मंज़िल को चलते चलते
ना जाने कब ख़त्म ये सफ़र होगा
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