
कार के शीशे में रह जाता शहर हम देखते हैं
जाने क्यूँ उस पगली की आँखों में घर हम देखते हैं
इस क़दर वो बिछड़ा कि बस भर नज़र ना देख पाए
अब तो आती और जाती हर नज़र हम देखते हैं
हैं बड़े नादान ऐसी आँखों के मासूम सपने
क़ैद में है ज़िन्दगी फिर भी
Read More! Earn More! Learn More!