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बेशुमार प्यार

क्यों करू तुझसे शिकवे गिले, तुझपे मुझे ऐतबार है

तेरी आंखो के आंसू मेरे आंखों से बहे, दुआ यही हर बार है


कलम में समाती नहीं ये तारीफ जैसे लफ्ज़ सब बेकार है

चाह हमेशा रूह की थी मुझे तेरे, जिस्म तो बस एक जरिया एक द्वार है


कहा

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