गोप-नार संग नन्दलालजू बिराजते।
मोर पंख माथ पीत वस्त्र गात साजते।
रास के सुरम्य गीत गौ रँभा रँभा कहे।
कोकिला मयूर कीर कूक गान गा रहे।।
श्याम पैर गूँथ के कदंब के तले खड़े।
नील आभ रत्न बाहु-बंद में कई जड़े।।
काछनी मृगेन्द्र लंक में लगे लुभावनी।
श्वेत पुष्प माल कंठ में बड़ी सुहावनी।।
शारदीय चन्द्र की प्रशस्त शुभ्र चांदनी।
दिग्दिगन्त में बिखेरती प्रभा प्रभावनी।।
पुष्प भार से लदे निकुंज भूमि छा रहे।
मालती पलाश से लगे वसुंधरा दहे।।
नन्दलाल बाँसुरी रहे बजाय चाव में।
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