तूने मशवरा मांगा, या अनजान बन तफ़्तीश की
नादाँ अब न मैं रहा,जानता हूँ किस बात की तस्दीक की।
नावाकिफ़ नहीं तुझसे कोई,तू आफ़ताब है मशरिक़ का
कितनी बार कोई ख़ुद को साबित करे,कोई मोल है ज़मीर का।
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नादाँ अब न मैं रहा,जानता हूँ किस बात की तस्दीक की।
नावाकिफ़ नहीं तुझसे कोई,तू आफ़ताब है मशरिक़ का
कितनी बार कोई ख़ुद को साबित करे,कोई मोल है ज़मीर का।
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