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ओ मेरे गणेशा...

करुणा की बारिश में स्नेह अपार हैं 
मंडपों में रौनक है, सजे दरबार हैं ।
त्योहारों के आने का दे रहें अंदेशा !

रैन भरी कुटिया का तुम्हीं हो सहारा
हरते हो विघ्न सारे, करते उजियारा ।
दर से तुमरे होते नहीं याचक
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