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न जाने यह किसने हार जीत पिरोए हैं...

शब्दों में अपने मधुर रीत पिरोए हैं 
झर झर सावन में संगीत पिरोए हैं ,

गुलशन नहीं है मेरी लाखों यारों की
मगर जो भी है सच्चे मीत पिरोए है ,

चलकर रेतों से , पहुंचकर खेतों में 
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