
रूठना है तो रूठें है और मन में फिर ऐंठें है
बैठे अगर पास में तो फिर चेहरा फेरे है
मन की बात मन में दबाते हुए रहते हैं
ना कुछ बोल पाते हैं कि ना कुछ सुन पाते हैं ।
अपनी बात को अपने पास रखते हुये
मान लेते हैं ये कि इसे समझ लें बिन क
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