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तु मेरे रात्रिमय जीवन मे ज्योती बनकर आई

दोजख सा था जिंदगी का सफ़र मेरा
ना कोई पराया
ना कोई अपना

बंजर सा था ये हृदय मेरा
ना मुझमे कोई
ना किसी मे मैं

मकान था पर घर नही बन पाया वो मेरा
ना दर्द छुपाने के लिए माँ का आँचल
ना छाँव के लिए पिता का साया
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