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ज़िंदगी और मौत के बीच

ज़िंदगी और मौत के बीच


ज़िंदगी के लम्हों की सौगात खत्म होती जाएगी

ज़िंदगी इक दिन मौत को गले लगाएगी

जाने क्यों इक हूक उठती है मन में

क्या मौत ही इस ज़िंदगी की मंजिल बन जाएगी? 


हां… यह सच है मौत ज़िंदगी की किताब का आखिरी पन्ना है

पर इस आखिरी पन्ने से पहले ज़िंदगी की किताब लिखी जानी बाकी है 

और बाकी है…. अनुभवों की स्याही से इसे  रंगना


बहुत से पन्ने उलझन- कशमकश

सफलताओं-विफलताओं की स्याही में रंग चुके हैं

अतृप्त तृष्णाओं के बोझ से

फड़फड़ाते जा रहे हैं कुछ अधूरे पन्ने.. 

मानो.. घने अंधकार में जा रहे हैं यह रंगते.. 


इस घनघोर कालिमा के बीच

एक उजास फूटता-सा.. 

याद आती है वह मुस्कान

जो देखी थी आज चौराहे पर

गुब्बारे बेचती उस लड़की की

मानो कहती हो..

जिंदगी… दुख के सायों में भी 

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