
हस्तियों का अंत हो गया
पर ना बदली शोषण की कहानी
शोषणकर्ताओं के दर्प की आग से
हर मजबूर की आंख में है बस पानी
तबकों की जमात में जो है उच्च नामधारी
निम्न को दबाने की परंपरा रही तुम्हारी
युग बदला बदलें शोषण के रूप
कलम की चाबुक से चोटिल करते हैं
निरीह जीवो का वजूद
प्रेमचंद कलम तुम्हारी कर गई थी
शोषण की तस्वीर बेनकाब&n
Read More! Earn More! Learn More!