ये कविता लिखने से पहले कलमों पे विश्वास किया हूं,
मै भी थोड़ा कारगिल पे लिखने का आज प्रयास किया हूं,
चलो जड़ा मिलवाए कितना नुकसान हुआ उस कारगिल मे,
सेना के साथ मे कौन कौन बलिदान हुआ उस कारगिल मे,
जो बेटा मरा है कारगिल में उस बाप का कंधा टूट गया,
जो बेटा मरा है कारगिल में उस मा का दामन छूट गया,
जो भाई मरा है कारगिल मे उस बहन की राखी रूठ गई,
जो पति मरा कारगिल में उसकी पत्नी पूरी टूट गई,
जो बाप मरा कारगिल मे उसका बेटा भी रोया होगा,
कच्ची उमर में जो बेटा अपने पापा को खोया होगा,
जो बेटी अपने पापा की गुड़िया रानी कहलाती थी,
आए पापा सबसे पहले चरण पूजने आती थी,
वो बेटी भी रोई होगी उसका भी कांपा होगा काया,
जब उस बेटी का पापा जंग से घर को लौट नहीं पाया,
तो कुल यहां पे छे छे खुशियां घाटी मे बलिदान हुई,
उस कारगिल के भीषण रण के अंतिम ये परिणाम हुए,
अब चलो जड़ा उन परिवारों के हाल तुम्हे बतलाते है,
क्या मातम पसरा उस घर में एक बार चलो दिखलाते है,
सुना है कोई बाप अपने बेटे के खातिर रोया है,
सुना है किसी बहन ने अपने भाई को खोया है,
कोई मां बेहोश पड़ी बेटे की लाश देख कर के,
जो बेटा गोद मे खेला उसकी बंद सांस देख कर के,
कोई बेटी बाप के खातिर आंसू लाख बहाती है,
कोई बीवी मांग मे भड़ा सिंदूर पोछ गिराती है,
बंदूक टांग के कंधे पे जो निकले देश बचाने को,
मौत की परवाह छोड़ चले शत्रु का शिश गिराने को,
कितने छोटे बच्चे उस दिन बिना बाप के हो गए थे,
जिस दिन उन मासूमों के पापा मीठी नींद सो गए थे,
गीली मेहंदी हाथों में, सिंदूर वो पोछ रही देखो,
आंगन में लाश पति का और वो प्राण है खोज रही देखो,
माथे के सिंदूर गए है भारत देश बचाने को,
मांओं के बेटे निकले दुश्मन का शीश गिराने को,
नव विवाह के दूल्हे भी हथियार टांग के कंधे पे,
भारत मा के रक्षा खातिर एकदम पहुंच गए रण में,