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Ye aankhein kya se kya chhupa rahi hain

ग़ज़ल

ये आंखें क्या से क्या छुपा रही है

तेरी ख़ामोशी मुझको खा रही है


मैं अपनी ही नज़र में गिर गया हूं

मुझे वो छोड़कर अब जा रही है


महफ़िल-ए-यार कि हम ना जाएं

मेरे यार-ओं को यारी सता रही है 

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