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Tu hi manzil hai meri tu hi mera sahil hai

ग़ज़ल

तू ही मंज़िल है मेरी तू ही मेरा साहिल है

तू ही तन्हाई है मेरी और तू ही महफ़िल है


ना दामन में दाग आए ना ख़ंजर में दाग

वो निगाहों का हुनर बाज़ कोई क़ातिल है 


तेरे ख़्याल-ओं से मेरा ख़याल बेहतर है 

तू मांगता है आसमां ज़मीं मुझको हासिल है


दुनियां में मोहब्बत के सिवा क

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