
एक लड़की ऐसी है जो बचपन में बड़ी हो गयी,
शोर से इस रोज़मर्रा में अनसुनी सी ध्वनि हो गयी |
हल्के फुल्के कंधों पे उत्तरदायित्व से सनी हो गयी,
भागते से जीवन में रुकी सी खड़ी हो गयी |
सिलवटों से छुटपन में क्षण में घड़ी हो गयी,
कभी हंसी में बहती एक अश्रु की बूंद, मल्हार सी लड़ी हो गयी,
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