
मेरी माँ, मुझे बेटा बनाने को निकली है।
न जाने कैसे अज़ीब ख्वाब बुनने लगी है।
अब वो मेरी आँखों में काजल भी नहीं लगाने देती,
अब तो मेरे गालों पर लाली भी बिखेरने नहीं देती।
न जाने मेरे लिए किस उलझन को सुलझाने में घुली है।
मेरी माँ, मुझे बेटा बनाने को निकली है।
अब मुझे फूलों से नहीं बल्कि काँटों से खेलना सिखाती हैं
किसी चमकीले फर्श नहीं पथरीले रास्तों पर चलने को कहती है।
मुझे न जाने क्यों किस हाल में बदलने को बैठी है,
मेरी माँ, मुझे बेटा बनाने को निकली है।
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