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हम आज के गुल में खुद को खो दिए

वो भूतों की कहानी हो

या पतंग से पेंच लड़ानी हो

वो पल अब बस यादों में ही कैद हो गए

हम आज के गुल में खुद को खो दिए


वो दोस्तो के साथ की मटरगस्ती हो

जहां क्रिकेट हर शाम की मस्ती हो

अब हम सब एक यंत्र के अधीन हुए

हम आज के गुल में खुद को खो दिए


वो दूरदर्शन की रंगोली हो

या रेडियो पर सुनते जो कमेंट्री हो

शहर के शोर में हम गांव का सुकून खो दिए

हम आज के गुल में खुद को खो दिए


वो बारिश में बनाते कागज की कश्ती हो

लकडिय़ों से बनाया अपना छोटा सा बस्ती हो

अब तो जिम्मेदारों के बंधन में हम बंध गए

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