अपनी भी रंगीं क़िस्मत, कुछ और होती...
नज़र में तिरी इज़्ज़त, कुछ और होती...
की होती मिरी क़द्र-ए-मुहब्बत तुमने,
ज़िन्दगी की तबियत, कुछ और होती...
सिसकते न हम, क़ैद-ए-तनहाई में,
न ज
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अपनी भी रंगीं क़िस्मत, कुछ और होती...
नज़र में तिरी इज़्ज़त, कुछ और होती...
की होती मिरी क़द्र-ए-मुहब्बत तुमने,
ज़िन्दगी की तबियत, कुछ और होती...
सिसकते न हम, क़ैद-ए-तनहाई में,
न ज