
सात जन्मों की बातें करने वाली,
एक नाक की बूंदें, दो कानों की बाली,
एक जोड़ी सूट, जो हो पसंद तुम्हें,
एक पत्ता बिंदिया और महावर बंगाल वाली,
कुछ और नहीं, बस इतना ही दिलवा दीजिए मुझे,
सजकर आऊँगी उस रात, भोर से बिछुड़ना है मुझे,
मैं अयोग्य, एक ख्वाहिश भी पूरी कर न सका,
कर्महीन इतना कि, कोशिश अधूरी भी कर न सका,
ख़ाली हाथ, नीचा मस्तक, दबी जुबान बुदबुदा रही थीं,
नज़रें जो नज़र चुराती थीं, वहीं नज़रें अब नज़र चुरा रही थीं,
देख असमंजस में मुझको, वो दौड़ मेरे पास आती हैं,
अधरों पर रखकर तर्जनी, वो गले मुझे लगाती हैं,
कोई बात नहीं जी, मैं तो आपकी जीना सिखला रही थी,
चाहत और हसरत में है, फ़र्क़ कितना बताला रही थी,
आइये कुछ देर को बैठें, ये अंतिम प्रहर है हमारा,
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