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दुखी सुखन्वर


एक बार आसमान छूने की बात करी थी मैने रास्ते में

उस दिन ज़मी रास्ते भर रोई थी मुझे घर पहुंचाते पहुंचाते


कोई फूल नहीं खिलता अब मेरे आंगन में

आखिर कौन मुर्जाना चाहेगा मेरी उदासी देखते देखते


मुझसे पूछा किसी ने कि कैसा लग रहा है आकर शहर में

अगर अच्छा बता देता तो एक उम्र लग जाती अपने गांव को मनाते मनाते


अब तो लोग ठीक से वफादारी तक नहीं निभाते दुश्मनी में

और एक हम थे जो कभी थके नहीं दोस्तो को शराब पिलाते पिलाते


अपनी जीत का पक्का यकीन था उसको चुनावी मैदान में

जरूर उसकी नजर मजहब पर पड़ी होगी सियासत बांटते बांटते


खुदा कोई बेटी न दे उन परिवारों में

जिनके मर

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